जहां वर्दी पर अक्सर विलंब और विभ्रम के आरोप लगते हैं, वहीं लखनऊ की मलिहाबाद पुलिस ने विवेक, वेग और व्यवस्था का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इंसाफ की नई इबारत लिख दी है।
बुधवार को एक सात वर्षीय अनुसूचित जाति की बच्ची के साथ हुए जघन्य दुष्कर्म मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई और प्रमाण आधारित विवेचना के द्वारा मात्र 24 घंटे में चार्जशीट दाखिल कर न्याय की प्रक्रिया को न सिर्फ ऐतिहासिक गति दी, बल्कि पीड़ित परिवार को भरोसे की वह लौ भी प्रदान की, जो अक्सर ऐसे मामलों में बुझ जाती है।
तत्परता, तकनीक और तहकीकात
मलिहाबाद थाना पुलिस को जब पीड़िता के परिजनों के द्वारा घटना की सूचना मिली, तो बिना किसी विलंब के एसीपी मलिहाबाद की अगुवाई में पुलिस ने मामले को अत्यंत संवेदनशीलता से हैंडल करते हुए पीड़िता की मेडिकल जांच कराई, जिससे साक्ष्य सुरक्षित रहे। परिवार और चश्मदीदों के बयान बिना देरी के दर्ज किए। स्वैब, कपड़ों और डीएनए साक्ष्यों का वैज्ञानिक संकलन किया और सभी साक्ष्य FSL को भेजे गए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया भावनात्मक नहीं, वैज्ञानिक और ठोस आधारों पर खड़ी हो। इस पूरी प्रक्रिया का प्रत्येक चरण पुलिस आयुक्त अमरेंद्र कुमार सेंगर के कुशल निर्देशन में संपन्न हुआ।
जिलाधिकारी लखनऊ ने मामले की गम्भीरता को देखते हुए रात में ही नायब तहसीलदार से बयान दर्ज कराने के निर्देश दिए, जिससे कि कानूनी प्रक्रिया में कोई शिथिलता न रहे।
इस संपूर्ण प्रक्रिया में जिलाधिकारी विशाख जी. अय्यर की तत्परता निर्णायक रही, जिनके निर्देश से ही रात में Medico-Legal प्रक्रिया डायरेक्टर हेल्थ, CMO और CMS के पर्यवेक्षण में महिला डॉक्टर द्वारा पूरी कराई गई। इतना ही नहीं, पीड़ित बालिका को एम्बुलेंस से भेजकर न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष उसका बयान दर्ज कराया गया, जो शासन की संवेदनशीलता और पीड़िता की गरिमा की रक्षा हेतु संस्थागत समन्वय का अनुकरणीय उदाहरण है।
आधुनिक तकनीक और पुलिस थानों का तंत्र जब न्याय के लिए एक हो जाता है तो अपराधी का बचना असंभव हो जाता है। CCTV फुटेज, मोबाइल लोकेशन और स्थानीय खुफिया सूचनाओं के सटीक विश्लेषण के चलते सिर्फ 10 घंटे के भीतर आरोपी सूचित यादव को कानून के कठघरे में खड़ा कर दिया गया था। उसके विरुद्ध POCSO एक्ट व अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज है।
समाज के सबसे वंचित वर्ग के लिए खड़ा हुआ तंत्र
मलिहाबाद पुलिस की यह त्वरित, निष्पक्ष और प्रमाणाधारित कार्रवाई सिर्फ एक केस सुलझाने का उदाहरण नहीं बल्कि उस बदले हुए उत्तर प्रदेश की तस्वीर है, जहां कानून सिर्फ किताबों में नहीं, कार्यवाही में जीवंत है।
इस प्रकरण की गंभीरता केवल अपराध की प्रकृति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अनुसूचित जाति समुदाय की एक बच्ची के साथ हुए अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध पुलिस और प्रशासन की संवेदनशीलता एवं न्यायिक सक्रियता द्वारा किया गया सामाजिक न्याय की दिशा में एक सशक्त और सकारात्मक हस्तक्षेप भी है।
सात वर्षीय अबोध बालिका को त्वरित न्याय दिलाने की दिशा में लखनऊ पुलिस आयुक्त द्वारा इस हृदयविदारक प्रकरण को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाए जाने हेतु अनुशंसा की गई है, ताकि न्याय केवल सुनिश्चित ही नहीं, शीघ्र, संकल्पित और समाज के लिए सशक्त संदेश बन सके।
रिकॉर्ड तोड़ रफ्तार: पहले 36 घंटे थे, अब 24 में न्यायिक तैयारी
पुलिस सूत्रों के अनुसार, साल 2022 में इसी क्षेत्र में एक प्रकरण में 36 घंटे में चार्जशीट दाखिल की गई थी, जबकि इस बार महज 24 घंटे में केस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया। यह दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस अब तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं, न्याय की समयबद्ध प्रक्रिया को प्राथमिकता देती है।
इस संवेदनशील मामले में जिस तरह से मलिहाबाद पुलिस ने संवेदना, साक्ष्य और संविधान तीनों को साथ लेकर काम किया, वह न्याय-प्रशासन के लिए अनुकरणीय उदाहरण है।
यह सिर्फ 24 घंटे में दाखिल की गई चार्जशीट नहीं, बल्कि कर्तव्य, करुणा और कानून के साथ किया गया न्याय का निर्भीक उद्घोष था। मलिहाबाद पुलिस की यह कार्रवाई एक बच्ची की चुप्पी को न्याय की आवाज में बदलने का प्रयास थी और उस प्रयास में वर्दी भरोसे की सबसे प्रबल प्रतीक बनकर उभरी है।