“योगी मॉडल” से कोरोना कहर में भी सुरक्षित है उत्तर प्रदेश का “पशुधन” व पशुपालकों के हित

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प्रणय विक्रम सिंह

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प्रणय विक्रम सिंह

 भारत गांवों में बसता है और उत्तर प्रदेश ग्रामीण अंचल की “सम्पदा” से पूरित है। ग्रामीण जन-जीवन में “पशुधन”, जीवन से लेकर जीविकोपार्जन तक मेरुदण्ड सदृश भूमिका का निर्वहन करता है। कोरोना वायरस संक्रमण के दुसाध्य कालखण्ड में भी, अभी तक यह मेरूदण्ड सुरक्षित है, तो इसका सम्पूर्ण श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संवेदनशील, परिणामदायक नेतृत्व को जाता है।

लॉकडाउन की चुनौतीपूर्ण स्थिति में जब इंसान स्व-केंद्रित होकर अपने जीवन को सुरक्षित रखने हेतु सभी संभव प्रयासों में रत है, उस संक्रमण काल में मानवों के समान ही बेजुबान पशु-पक्षियों के लिए भी समभाव से विचार करने वाला कोई तापस वेशधारी ही हो सकता था। प्राणि मात्र के प्रति यही “समभाव” उन्हें सच्चे अर्थों में योगी बनाता है।

“पशुधन” को प्रत्येक आयामों में सुरक्षित रखना सरकार की प्राथमिकता में है तभी उ.प्र. सरकार द्वारा लॉकडाउन अवधि में राजकीय एवं निजी पशुचिकित्सालयों के माध्यम से आकस्मिक पशुचिकित्सा उपलब्ध करायी जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि 11 अप्रैल 2020 तक 1 लाख 67 हजार 695 पशु-पक्षियों को आकस्मिक चिकित्सा मुहैया करा कर उनके जीवन की रक्षा की गई है।

दरअसल यह मात्र पशु-पक्षियों की प्राण रक्षा भर नहीं है बल्कि अन्नदाताओं के आत्महंता बनने की विवशता के एक बहुत बड़े कारक का निदान भी है। यही तो है ‘सहजीवन’ का सिद्धांत, जो कोरोना वायरस संक्रमण की मृत्यु तुल्य परिस्थिति में भी “योगी मॉडल” के द्वारा अपने स्वाभाविक अर्थों में मुखरित हो रहा है।

जरा कल्पना करके देखिए कि एक किसान, जो अपने हाथों से अपनी गाय को घास खिलाता है, उससे प्रतिदिन चलते-फिरते आत्मीय संवाद भी करता है, वही गाय एकाएक बीमार पड़ जाए! क्या होगा? पूरा कृषक परिवार व्याकुल हो उठेगा। इस लॉकडाउन की निःस्तब्ध शांति से उपजा मृत्यु निनाद उन्हें भयक्रान्त करने लगेगा। ऐसी परिस्थिति में ही योगी आदित्यनाथ द्वारा पशु चिकित्सालयों को खोले जाने के निर्णय के पीछे की संवेदना समझ में आती है।

किसी को भी ‘भूखे’ न रहने देने के लिए संकल्पित उ.प्र. सरकार खाद्य आपूर्ति के मोर्चे पर नित नए प्रतिमान गढ़ रही है। किंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ‘किसी को भी’ में सिर्फ मानव ही नहीं पशु भी शामिल हैं। इसी कारण पशुओं के आहार एवं पशु औषधि की उपलब्धता बनाये रखने हेतु निजी क्षेत्र के पशु आहार विक्रय केंद्रों को खुला रखा गया है।

गौरतलब है कि पशुधन, हमारी कृषि, व्यापार व उद्योग की आधारशिला हैं। चारे और भूसे की प्रचुर उपलब्धता इसके संवर्धन और संरक्षण में आधारभूत भूमिका निर्वाहित करती हैं। तभी लॉकडाउन में भी चारे एवं भूसे की आपूर्ति हेतु अंतर्जनपदीय परिवहन, प्रतिबंध से मुक्त है। वाहनों का आवागमन निर्बाध रूप से हो रहा है। जनपद/निराश्रित आश्रय स्थलों पर पर्याप्त भूसे-चारे की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। किसी भी जनपद में चारे एवं भूसे की कमी की सूचना नहीं है।

दीगर है कि कोरोना के कहर ने मानव समाज को अनेक पीड़ाओं को साथ आश्रयहीनता का दंश भी दिया है, जिसे प्रदेश सरकार ने आश्रय स्थल प्रदान कर बहुत हद तक कम करने की कोशिश की है। किंतु आश्रयहीनता का बोध सिर्फ मानवों तक ही सीमित नहीं है। पशु भी इसे समान रूप से महसूस करते हैं। उस पर कोरोना के चलते निराश्रित पशुओं के लिए भोजन आदि की स्थिति भी बड़ी चुनौती पूर्ण हो गई है। ऐसे विपत्ति काल में जहां एक ओर 4,75,667 निराश्रित गोवंश को प्रदेश के 5003 गो संरक्षण केंद्रों/स्थलों में संरक्षित किया गया है तो वहीं दूसरी ओर निराश्रित पशु/स्ट्रीट डाग, लॉक डाउन में भूखे न रहें इसके लिये एस0पी0सी0ए0 / पशु कल्याण संस्थाओं एवं नगर निकायों द्वारा 11 अप्रैल,2020 को कुल 51,495 निराश्रित कुत्तों/पशुओं के आहार की व्यवस्था की गयी और यह क्रम बदस्तूर जारी है।

लॉकडाउन के कालखंड में गो-वंश संरक्षण और संवर्धन के क्रम में एक चुनौती यह भी थी कि कहीं कोरोना वायरस के “रक्तबीज” गौ-पालकों की कमाई को लील न जाएं। और यह तय था कि ये चोट ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को रसातल की दिशा में ढकेल देगी। लेकिन समस्या को अवसर में परिवर्तित करने में सिद्धहस्त योगी सरकार ने वह स्थिति नहीं आने दी। और लॉकडाउन अवधि में दुग्ध उत्पादकों को उचित मूल्य प्राप्त होता रहे इस हेतु पशुपालन विभाग,उ.प्र. द्वारा PCDF के अपने दुग्ध प्लांटों के साथ अमूल, मदर डेरी एवं निजी क्षेत्र के सभी प्लांटों को अधिकतम क्षमता में चलाने का कार्य किया गया। यही नहीं लॉकडाउन की विषम परिस्थिति में अनेक मिल्क प्लांट्स बंद करने पड़े थे, जिन्हें उ.प्र. के दुग्ध उत्पादकों के हितार्थ विभागीय प्रयासों से चालू कराया गया है। वर्तमान समय में कुल 29 मिल्क प्लांट संचालित हैं जिनके द्वारा प्रतिदिन लगभग 51.34 लाख लीटर दूध का उपार्जन कर लगभग 379.12 मी.टन मिल्क पाउडर का निर्माण किया जा रहा है। वहीं तरल दुग्ध आपूर्ति हेतु ग्रामीण क्षेत्रों से 51.95 लाख लीटर दुग्ध का उपार्जन कर 33.73 लाख लीटर दुग्ध वितरित किया गया है। दूध की खपत प्रत्येक घर में, सभी वर्गों के लिए दैनिक रूप से है। अतः लॉकडाउन के अनुशासन का ध्यान रखते हुए डोर-टू-डोर दुग्ध की आपूर्ति हेतु 19 , 688 लोगों को तथा हॉटस्पॉट क्षेत्र में 1085 लोगों को लगाया गया है। और यह उपरोक्त वर्णित प्रयत्नों का सुफल ही है कि प्रदेश में कहीं से भी दुग्ध उत्पादकों के द्वारा डिस्ट्रेस सेल और उपभोक्ताओं की आवश्यकता के अनुसार दूध उपलब्ध न होने की शिकायत अभी तक नहीं आई है।

यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि आहार और रोजगार का बहुत बड़ा जरिया “अण्डा” है। पोल्ट्री मुर्गी और अण्डे के संबंधित न जाने कितनी दास्ताने और कविताएं हमारे समाज में सुनाई जाती हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि दूध की भांति अण्डा भी हमारी जीवन शैली में विशेष स्थान रखता है। लिहाजा उत्तर प्रदेश सरकार ने लॉकडाउन के संक्रमण काल में भी अण्डे के उत्पादन को प्रभावित नहीं होने दिया। और प्रदेश के 882 अण्डा उत्पादन इकाइयों के माध्यम से लॉकडाउन अवधि में प्रतिदिन 77 , 07 , 809 अण्डों का उत्पादन हुआ। 11 अप्रैल 2020 तक 9,36,36,259 अण्डों की बिक्री/विपणन, अण्डा उत्पादकों द्वारा किया गया।

आंकड़ों की गवाही और तथ्यों की रोशनी में ये कहा जा सकता है कि आपदा के कालखंड में भी कुशल नियोजन और अनुशासित क्रियान्वयन के माध्यम से जिस तरह उ.प्र. की योगी सरकार ने पशुधन की सुरक्षा, उससे उत्पन्न उत्पादों की आमजन तक पूर्ति को सुनिश्चित किया है, वह “व्यवस्था” के क्षेत्र में मील का पत्थर है। संवेदना और सक्रियता की युति से उत्पन्न प्राणि-मात्र के संरक्षण हेतु जो “उदारता”, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्णयों में मुखरित हुई है, वह शासन पद्धति के लिये एक नई दृष्टिकोण का सृजन भी करती है।

 

 

 

 

 

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