प्रणय विक्रम सिंह
भारतवर्ष के राजनीतिक इतिहास में दर्ज 19 मार्च 2017 वो ऐतिहासिक तारीख है, जब पहली बार लोगों ने एक तापसवेश धारी योगी को देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेते हुए देखा था। जी हां, यह वही युगांतकारी तिथि है जिसने भारतीय राजनीति में सात दशकों के स्थापित सियासी तानेबाने को तोड़ कर नई इबारत लिखी थी। लेकिन वक्त ने तो यह ऐतिहासिक पटकथा 05 जून 1972 को ही लिखनी प्रारम्भ कर दी थी जब देवभूमि हिमालय की उत्पत्यकाओं में स्थित गढ़वाल मण्डल के पिचूर गांव में आनंद सिंह बिष्ट के घर एक बालक ने जन्म लिया था। जी हां, आप सही समझे… यह वही बालक है जिसे आज हम सभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम से जानते हैं।
पहाड़ की रमणीय वादियों से सियासत की तल्ख राहों के मुसाफिर योगी का सफर अनेक उतार-चढ़ावों की एक दिलचस्प दास्तान है जिसमें, बालसुलभ इच्छाओं का कलरव है तो सन्यास के महासमर की निस्तब्ध करने वाली शांति है। परिवार का परित्याग है तो “मानव परिवार” से मिलन का संकल्प भी है। गृहस्थ जीवन से विमुखता है तो सार्वजनिक जीवन का दायित्व भी है। साधना में रत “योगी” का हठ है तो सेवा में रत “राजयोगी” का संकल्प है। जीरो टालरेंस की तलवार है तो भावुक राजनेता की बाल सुलभ मुस्कान भी है। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम का सिंहनाद है तो त्रेता युग के राम की भांति पितृ-शोक का आर्तनाद भी है।
छोटे कद और बड़े किरदार की अफसानवी शख्सियत के मालिक योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक शैली ने अनेक पारम्परिक सियासी मानकों को तोड़ा तो राजनीति के दंगल में नए प्रतिमान भी गढ़े। अब चाहे, सदियों से विवादित श्री राम जन्मभूमि पर कोर्ट के निर्णय के बाद की शांति हो या अनुच्छेद-370 के निर्मूलन के पश्चात पत्ता न हिलने देने की उक्ति का चरितार्थ होना, तीन तलाक जैसी अमानवीय प्रथा का गैर कानूनी होना हो या धार्मिक विभेद के चाबुकों से लहूलुहान मानवता की देह पर नागरिकता संशोधन कानून के माध्यम से मलहम लगाने की कोशिश, उ.प्र. में कायम रही शांति, योगी के इकबाल का परिणाम थी।
इसी क्रम में वैश्विक आपदा के दुर्धर कालखण्ड में भी लगभग 23 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों एवं कामगारों को सकुशल उ.प्र. वापस लाने में सफल रहे योगी की कार्यशैली ने देश के अन्य सूबों के मुख्यमंत्रियों के लिए एक मानक तय कर दिया है।
यही नहीं “हर हाथ को काम” के संकल्प को मूर्तरूप प्रदान करने की उनकी प्रतिबद्धता “अंत्योदय से राष्ट्रोदय” के मंत्र को अमलीजामा पहनाने का एक पड़ाव है। यह आत्मनिर्भर भारत की प्रथम दस्तक है। यह पेट की आग को शांत करने हेतु आजीविका की तलाश में भटकते लहूलुहान कदमों के प्रति योगी का संवेदनशील दायित्वबोध ही है जिसने उन्हें, देश के सबसे पहले कामगार-श्रमिक कल्याण आयोग के गठन के लिए प्रेरित किया। श्रमिकों और कामागारों की रहनुमाई की दलील देने वाली दर्जनों हुकूमते आईं और चली गईं लेकिन किसी ने भी प्रवासी श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के विषय में ऐसे संस्थागत स्वरूप में नहीं सोचा, यही शैली योगी को युगांतकारी बनाती है।
योगी आदित्यनाथ ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब बहुत बड़ी जमात ऐसे लोगों की भी थी और आज भी है जो कह रहे थे कि एक संन्यासी का सियासत में क्या काम? योगी की वैचारिक स्पष्टता और राजनीतिक अनुभव पर सवाल उठा कर उन्हें अतिवादी और अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने की कूट रचना कर रहे थे। हालांकि आज भी ऐसी जमात सक्रिय है लेकिन योगी ने अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में उन्हें निरुत्तर कर दिया है। योगी की “ठोक दो” शैली ने बे-अंदाज अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया तो जीरो टालरेंस की तलवार ने बेलगाम नौकरशाही को काम करने की कार्य संस्कृति का पहला सबक पढ़ाया। खादी और खाकी को जनता की खिदमत और ख्याल करने का पाठ भी योगी ने अपने अंदाज में पढ़ाया।
वैसे किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले योगी आदित्यनाथ के उदय, उनकी आध्यात्मिक और सियासी यात्रा और जन्म से लेकर वर्तमान तक आकार लेते वैचारिक दर्शन के विभिन्न आयामों को देखने और समझने की जरूरत है।
योगी के आचरण और आवरण में समरूपता का प्राकट्य इस बात का द्योतक है कि जो वह सोचते हैं वही करते हैं। अब मुख्तसर सवाल है कि योगी सोचते क्या हैं? क्या योगी वाकई मुस्लिम विरोधी हैं? क्या योगी सरकार की कल्याणकारी नीतियों में अ-हिंदू लोगों को सहभागिता से वंचित रखा जा रहा है? उत्तर है कदापि नहीं।
योगी सरकार के आर्थिक बजट से लेकर उनकी लोक कल्याणकारी नीतियों तक में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं दिखाई पड़ता है। इंसेफेलाइटिस की अंतहीन वेदना हो या कालाजार का क्लेश, प्राकृतिक आपदा की व्यथा हो या कुष्ठ रोग की परित्यक्त पीड़ा, योगी की नीतियां कब भेदभाव मूलक हुई हैं! हां, शायद योगी आदित्यनाथ ही ऐसे विरले मुख्यमंत्री होंगे जिन्होंने प्राणी मात्र से प्रेम के सिद्धांत को जीते हुए बेजुबान जानवरों के लिए “भूसा बैंक” तैयार करवाया जिसका परिणाम है कि कारोना कहर के दरम्यान भी पशुओं को प्रचुर मात्रा में भूसा प्राप्त हो रहा है।
योगी की दूरदर्शिता और स्थानीयता की समझ को कुछ यूं समझा जा सकता है कि कोरोना संक्रमण के मध्य प्रधानमंत्री मोदी ने लोकल के लिए वोकल होने का आह्वान किया है लेकिन योगी ने तो पहले से ही लोकल की महत्ता को समझते “एक जनपद-एक उत्पाद” जैसी योजना संचालित कर रखी है। वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के जनपद हुनर की खान और विशेषताओं का केंद्र है। यदि उन्हें बाजार तक आने अवसर मिले तो वैश्विक क्षितिज पर उत्तर प्रदेश के हुनर और उत्पादों का डंका बजेगा। यानी विश्व फलक पर “स्वदेशी” गौरव भूषित होगा। “ODOP” उसी संकल्पना को मूर्तरूप प्रदान करने का प्रयास है।
दशकों से बांट जोह रहे पुलिस सुधारों के क्रम में पुलिस की कमिश्नरी व्यवस्था से उ.प्र. को रूबरू कराने का मुश्किल कार्य भी सिर्फ योगी के बूते की ही बात थी अन्यथा पूर्व में अनेक बार योजना बनी और नाकाम रही।
किसान से कामगार तक, सड़क से सुरक्षा तक, तकनीकी से तंत्र तक, पर्यटन से पारिस्थितिकी तक, आधारभूत ढांचे से अर्थोपार्जन तक, स्वास्थ्य से समाज कल्याण तक लगभग हर विभाग तक योगी सरकार के नवाचारी प्रयोगों की रोशनी पहुंची है। ध्यातव्य है किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के अनेक हिस्से होते हैं। प्रशासनिक व्यवस्था, प्रदेश के मुख्यालय से लेकर जिले की प्राथमिक इकाई तक श्रृंखलाबद्ध तरीके से विस्तार पाती है। लिहाजा लाखों कार्मिकों के द्वारा संचालित होने वाली व्यवस्था में किसी भी प्रकार की अनियमितता के घटित होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। किंतु यह तो डंके की चोट पर कहा जा सकता है कि उ.प्र. के मुखिया का पद जिस व्यक्ति के पास है, वह सांसारिक लोभों के सम्मुख अडिग है।
सांसारिक लोभों के सम्मुख अविचल, अडिग रहने का मूलाधार, संन्यास जनित तप से जन्मी सहकार, सहजीवन, सहअस्तित्व को स्वीकार करने वाली वैचारिक दृष्टि है। और इससे निर्मित दृष्टिकोण द्वारा ही ‘राम’ और ‘राष्ट्र’ की आराधना होती है। योगी कहते हैं कि राम और राष्ट्र परस्पर पूरक हैं, अलग नहीं। राम, राष्ट्र के ही प्रतीक हैं। राम सबके हैं, निर्धन के बल राम हैं। जो निर्धन और अशक्त हेतु सेवारत है वह राम और राष्ट्र का सेवक है। यह है योगी आदित्यनाथ की वैचारिक स्पष्टता।
सियासत, समस्या और संभावना के संधिकाल से उपजी वह तल्ख हकीकत है जिसमें सृजन का बल और विध्वंस की शक्ति दोनों समाहित है। सांसारिक लोभों से विरत, योगी आदित्यनाथ जैसे किरदार, इसके शुद्धिकरण और संतुलन का कारक बनते हैं। शुक्र है कि उत्तर प्रदेश के पास एक योगी आदित्यनाथ हैं।