उत्तर प्रदेश की धरती पर दशकों से खून और खौफ के कारोबार में लिप्त रहे माफिया नेटवर्क के एक और खूनी पन्ने का अंत हो गया। 14 जुलाई 2025, थाना छपार, जनपद मुजफ्फरनगर, यूपी एसटीएफ की फील्ड यूनिट मेरठ द्वारा मुठभेड़ में घायल अवस्था में पकड़े गए कुख्यात अपराधी शाहरुख पठान पुत्र जरीफ (निवासी खलापार, मुजफ्फरनगर) को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
यह वही शाहरुख पठान था, जो संजीव जीवा और मुख्तार अंसारी गिरोह का प्रमुख शार्प शूटर और कई हत्या, रंगदारी और गैंगवार का सरगना रहा है।
हत्या, रंगदारी और गवाहों की हत्या से बना ‘सिस्टमेटिक किलर’
शाहरुख की आपराधिक यात्रा वर्ष 2015 में तब सामने आई जब उसने मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन पर पुलिस कस्टडी में ही आसिफ जायदा की हत्या कर दी। इस दुस्साहसिक वारदात ने उसे अपराध की दुनिया में स्थायी जगह दिला दी। जेल में रहते हुए उसका संपर्क संजीव जीवा और मुख्तार अंसारी जैसे माफियाओं से हुआ और देखते ही देखते वह गिरोह का भरोसेमंद हत्यारा बन गया।
वर्ष 2016 में सिविल लाइन, मुजफ्फरनगर से फरार होने के बाद वह एक के बाद एक हत्याएं करता गया। 2017 में हरिद्वार के व्यापारी गोल्डी की हत्या, और उसी वर्ष आसिफ जायदा मर्डर केस के गवाह (आसिफ के पिता) की हत्या भी उसी ने की थी। उसके खिलाफ हत्या और गवाहों को डराने के संगीन आरोपों के चलते ₹50,000 का इनाम घोषित किया गया।
हालांकि बाद में उसे पुनः गिरफ्तार कर जेल भेजा गया और गोल्डी हत्याकांड में संजीव जीवा के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई। मगर, छह माह पूर्व जमानत पर बाहर आने के बाद उसने फिर से गवाहों को धमकाना और हत्या का प्रयास शुरू कर दिया। संभल में दर्ज मुकदमों में वह वांछित चल रहा था।
बरामद असलहों से स्पष्ट, फिर से गैंगवार में सक्रिय था शाहरुख
एसटीएफ की मुठभेड़ के बाद शाहरुख के पास से एक 30 एमएम बरेटा पिस्टल, 32 एमएम ऑर्डिनेंस रिवॉल्वर, 9 एमएम देसी पिस्टल, बिना नंबर की ब्रेज़ा कार, 63 ज़िंदा कारतूस और 6 खोखा कारतूस जैसे भारी मात्रा में खतरनाक हथियार बरामद हुए।
यह साफ संकेत था कि वह किसी बड़ी वारदात की फिर से तैयारी कर रहा था। उसकी मंशा न केवल पुनः हिंसा भड़काने की थी, बल्कि न्याय प्रणाली को खुली चुनौती देने की भी थी। यह बरामदगी न सिर्फ उसके सशस्त्र खतरे को सिद्ध करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि गैंगवार की छाया आज भी यूपी के पश्चिमी जिलों में मंडरा रही है।
विस्तृत आपराधिक इतिहास, गवाहों पर हमला और फरारी
शाहरुख पर एक के बाद एक ग्यारह से अधिक संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। इनमें धारा 302 के तहत हत्या, धारा 386 के तहत रंगदारी, धारा 223-224 के तहत फरारी, गैंगस्टर व गुंडा एक्ट, आर्म्स एक्ट, और संभल में दर्ज ताजा मुकदमे शामिल हैं, जहां वह गवाहों को मारने की फिर से कोशिश कर रहा था। उसकी रणनीति साफ थी कि गवाहों को खत्म करो, मुकदमे को तोड़ो, और गैंग का राज फिर स्थापित करो।
STF की कार्रवाई: अपराध से मुक्ति की दिशा में निर्णायक कदम
एसटीएफ की मुठभेड़ कोई सामान्य कार्रवाई नहीं थी। यह उस संगठित अपराध और माफिया गठजोड़ पर निर्णायक प्रहार है, जिसने वर्षों तक यूपी के पश्चिमी जिलों को दहशत में रखा। शाहरुख का अंत केवल एक अपराधी की मौत नहीं, बल्कि गवाहों, व्यापारियों, और आम नागरिकों को भयमुक्त करने की दिशा में एक निर्णायक कार्रवाई है।
इस मुठभेड़ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार और उसकी सुरक्षा एजेंसियां अब ‘जीवा-मुख्तार’ मॉडल के अपराधियों को कानून की पकड़ से छूटने नहीं देंगी। शाहरुख पठान की मौत से न सिर्फ एक खूनी सफर थमा, बल्कि यह संदेश भी गया कि न्याय की आंखों में अब न जाति है, न गिरोह सिर्फ कानून है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अपराध के विरुद्ध कार्यवाही में न तो राजनीति चलेगी, न समीकरण। शाहरुख पठान का अंत उसी माफिया तंत्र की जड़ों पर प्रहार है, जो वर्षों से गवाहों को चुप कराकर न्याय की प्रक्रिया को तहस-नहस करता रहा है। अब उत्तर प्रदेश में न कोई अपराध छिपेगा, न कोई अपराधी बचेगा।