जिहादी जहरीले जंतुओं के तेजाबी दांतों को तोड़ता रहेगा भारत

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प्रणय विक्रम सिंह

@SamacharBhaarti

भारत दुनिया के जिहादी जहरीले जंतुओं को उनके जीते जी जहन्नुम का नजारा दिखाना बखूबी जानता है। बरेली की सड़कों से लेकर दुबई के चमकदार स्टेडियम तक यह नजारा पूरी दुनिया ने देखा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दो टूक संदेश था कि ‘न जाम होगा, न कर्फ्यू लगेगा, ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि आने वाली पीढ़ियां भी दंगा करना भूल  जाएंगी।’ यह सिर्फ चेतावनी नहीं, बल्कि उस नीति का ऐलान है जिसने 2017 के बाद यूपी से जिहादी उपद्रव की कब्र खोद दी।

और यही संकल्प दुबई के स्टेडियम में भी गूंजा। एशिया कप 2025 के फाइनल में पाकिस्तान को हराकर भारत चैंपियन बना, लेकिन टीम इंडिया ने पाकिस्तानी गृहमंत्री और एसीसी अध्यक्ष मोहसिन नक़वी के हाथों से ट्रॉफी लेने से इंकार कर दिया। नक़वी केवल क्रिकेट प्रशासक नहीं था, बल्कि वही व्यक्ति था जिसने सोशल मीडिया पर भारत-विरोधी और सैन्य शक्ति के प्रतीक पोस्ट किए थे। फाइटर जेट और ‘फाइनल डे’ जैसे उकसावे वाले चित्र इस बात का प्रमाण थे कि वह खेल को भी जिहाद और सियासत की रणभूमि मानता है। भारतीय टीम ने उसकी यही जहरीली मानसिकता ध्वस्त कर दी।

पाकिस्तानी हुक्मरानों को लगा कि नक़वी के हाथ से ट्रॉफी लेकर भारत अपमान का घूंट पी लेगा, लेकिन भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव और उनकी टीम ने स्पष्ट कर दिया कि ‘न हैंडशेक, न ट्रॉफी’। जिहाद और आतंक समर्थक हाथों से कोई रिश्ता नहीं। नक़वी की बौखलाहट और दर्शकों की ‘भारत माता की जय’ की गूंज यह साबित कर गई कि भारत अब पाकिस्तानी जहर का जवाब उसी भाषा में देता है, जिसे दुश्मन समझता है।

जब कप्तान सूर्यकुमार यादव और उनके साथी खिलाड़ियों ने नक़वी के हाथ से ट्रॉफी लेने से इनकार किया, तो यह केवल खेल का प्रसंग नहीं था, यह महाभारत का दृश्य था। जैसे अभिमन्यु ने चक्रव्यूह को भेदा, वैसे ही सूर्या ने नक़वी के प्रतीकात्मक चक्रव्यूह को भेद दिया। नक़वी की मंशा थी कि टीम इंडिया उसके हाथ से ट्रॉफी लेकर झुके, पर सूर्या ने दिखा दिया कि भारत का झुकना अब असंभव है।

रामायण में जब राक्षसों का आतंक धरती पर छाया, तब प्रभु श्रीराम ने प्रतिज्ञा की थी “निसिचर हीन करउँ महि, भुज उठाइ पन कीन्ह।”
(मैं अपनी भुजाओं को उठाकर प्रतिज्ञा करता हूं कि इस धरती को राक्षसों से मुक्त कर दूंगा।)

दुबई के मैदान पर भारतीय टीम का आचरण इसी प्रतिज्ञा की अनुगूंज था। नक़वी की जहरीली सोच, जिसमें खेल को भी युद्ध और जिहाद की भाषा में ढालने का दुस्साहस था, उसके सामने भारत ने भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिखाए गए मार्ग “परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम्” का पालन कर इतिहास रच दिया।

दरअसल टीम इंडिया की चुप्पी ही उसके मनोभावों का शंखनाद थी। नक़वी मंच पर ट्रॉफी लिए खड़ा रहा, खिलाड़ी 15 गज दूर खड़े रहे, और दर्शकदीर्घा “भारत माता की जय” से गूंज उठी। यह दृश्य केवल क्रिकेट नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का महायज्ञ था, जिसमें ट्रॉफी आहुति बनी और तिरंगा विजयध्वज।

फिर जब कप्तान सूर्या ने अपनी मैच फीस पहलगाम के शहीदों और भारतीय सैनिकों को समर्पित की, तो यह स्पष्ट हो गया कि यह जीत केवल रन और विकेट की नहीं थी। यह जीत उन शहीदों के नाम थी जिन्होंने अपना रक्त देकर राष्ट्र की रक्षा की।

और ठीक इसी क्षण, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्विटर पर लिखा “मैदान कोई भी हो, विजय सदा भारत की ही होगी…”

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस क्रिकेटीय विजय को ऑपरेशन सिंदूर की प्रतिध्वनि बताते हुए कहा “खेल के मैदान पर #ऑपरेशनसिंदूर। नतीजा वही… भारत जीत गया”

यह शब्द केवल ट्वीट नहीं थे, बल्कि उस राष्ट्रचेतना की प्रतिध्वनि थे जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि मैदान जंग का हो या खेल का, विजय सदा भारत की ही होगी।

यह ‘नया भारत’ है। यह वही भारत है जिसने ऑपरेशन सिंदूर से आतंकियों को धोया और अब क्रिकेट के मैदान पर भी उसी संकल्प को निभाया। पहले हाथ न मिलाना, फिर ट्रॉफी न लेना, और फिर विजय को सेना को समर्पित करना, यह कोई साधारण अनुशासन नहीं, यह राष्ट्रधर्म का अनुपालन है।

वैसे इस प्रकार के साहसी आचरण की अपेक्षा अब तक सिर्फ इजरायल के खिलाड़ियों से ही की जाती रही है लेकिन भारत ने भी बड़ी लकीर खींच दी है।

यही कारण है कि आज भारत को इजरायल के साथ एक सांस में याद किया जाता है। इजरायल ने दशकों तक आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब दिया और अपने शत्रुओं को घर में घुसकर मारने की नीति से दुनिया को चौंकाया। वही दृढ़ता, वही संकल्प भारत भी दिखा रहा है। बरेली की सड़कों से लेकर दुबई के स्टेडियम तक संदेश साफ है कि जिहादी जहरीले जंतुओं के तेजाबी दांतों को ऐसे ही तोड़ता रहेगा नया भारत…!

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