प्रणय विक्रम सिंह
वृक्ष, ‘जीवन और जीविका’ के प्रदाता हैं। पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितिकी संतुलन के लिए ‘वृक्षारोपण’ परमावश्यक है। अध्यात्म से लेकर अर्थव्यवस्था तक, आयुर्वेद से लेकर आधारभूत ढांचे तक ‘वृक्ष’ की भूमिका महत्वपूर्ण है। कोरोना कालखण्ड में हम सभी ने ऑक्सीजन की महत्ता को बखूबी समझा है, वृक्ष उसके नैसर्गिक उत्सर्जक हैं। अधिकाधिक वृक्षादित भू-भाग प्राणि मात्र की सुरक्षा की गारंटी है। धर्मशास्त्रों में भी वृक्षारोपण को पुण्यदायी कार्य बताया गया है।
महज 06 वर्षों में 135 करोड़ से अधिक ‘पालनहार’ वृक्षों का रिकार्ड रोपड़ करने वाली योगी सरकार की अपने प्रदेश वासियों के स्वास्थ्य तथा प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण के प्रति गंभीरता को समझा जा सकता है। ‘माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:’ भाव को आत्मसात कर उ.प्र. की पावन धरा को पुनः ‘शस्य-श्यामला’ बनाने के लिए प्रदेश सरकार के अविराम प्रयास अनेक राज्यों के लिए अनुकरणीय हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में वर्ष 2017-18 में 5.72 करोड़, 2018-19 में 11.77 करोड़, 2019-20 में 22.60 करोड़, 2020-21 में 25.87 करोड़, 2021-22 में 30.53 करोड़ और 2022-23 में 35.49 करोड़ पौधे उ.प्र. की उर्वरा भूमि पर लगाए गए हैं। सुखद बात यह है कि पौधे लगाने के साथ ही इनके संरक्षण का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
योगी सरकार के भागीरथी प्रयासों का ही सुफल है कि स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की रिपोर्ट 2021 के अनुसार उत्तर प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 9.23 फीसद हिस्से में वनावरण है। 2013 में यह 8.82 फीसद था। रिपोर्ट के अनुसार 2019 के दौरान कुल वनावरण और वृक्षावरण में 91 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। वर्ष 2030 तक सरकार ने इस रकबे को बढ़ाकर 15 फीसद करने का लक्ष्य रखा है। विदित हो कि इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए अगले 05 वर्ष में 175 करोड़ पौधों को रोपण व संरक्षण करना होगा।
‘वन हैं तो जल है, जीवन है’ भाव से जन-जन के जोड़ने से वृक्षारोपण महाभियान जन आंदोलन की शक्ल ले चुका है। विगत 01 से 07 जुलाई तक आयोजित जागरूकता सप्ताह के दौरान में आमजन में दिखा अथाह उत्साह उसकी एक बानगी थी। वैसे आमजन की अधिकाधिक सहभागिता से ही ‘हरित उत्तर प्रदेश’ का लक्ष्य भी पूरा हो सकेगा।
‘हरित उत्तर प्रदेश’ लक्ष्य की सिद्धि के लिए योगी सरकार किसी भी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरत रही है। विद्यालयों में प्रभात फेरी, स्लोगन, निबंध लेखन, भाषण प्रतियोगिता, दीवार लेखन जैसे जागरूकता कार्यक्रमों से लेकर वृक्षारोपण प्रोत्साहन हेतु अनेक नवाचारी योजनाओं की शुरुआत उसका उदाहरण है। जैसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत निजी खेत की मेड़ पर पौधरोपण को प्रोत्साहित करते हुए ‘मुख्यमंत्री कृषक वृक्ष धन’ योजना के रूप में किसान और पर्यावरण के हित में अत्यंत उपयोगी योजना संचालित है। इस योजना अंतर्गत मनरेगा के लाभार्थी यदि अपनी भूमि पर यदि न्यूनतम 200 पौधे लगाकर उनका संरक्षण करता है तो उसे राज्य सरकार द्वारा तीन वर्ष में ₹50,000 की प्रोत्साहन राशि प्रदान किए जाने की व्यवस्था है। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार करते हुए किसानों को लाभान्वित कराएं। इससे पौधरोपण भी होगा और किसानों की आय भी बढ़ेगी। यह प्रयास ‘खेत पर मेड़-मेड़ पर पेड़’ के संदेश को चरितार्थ करने वाला होगा।
अब सवाल यह है कि पौधारोपण किया कहां जाए? उद्देश्य तो जनहितकारी है किंतु स्थान की भी पूर्वानुमति होनी चाहिए ताकि किसी भी किस्म के विवाद से बचा जा सके क्योंकि हर मंगलकारी, जनहितकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने के लिए राक्षस प्रवृति के लोग सदैव तैयार रहते हैं। प्रदेश सरकार ने इसका हल निकालते हुए निदेर्शित किया है कि पौधरोपण के लिए वन भूमि, ग्राम पंचायत एवं सामुदायिक भूमि, एक्सप्रेस-वे, हाई-वे/04 लेन सड़क, नहर, विकास प्राधिकरणों की भूमि, रेलवे की भूमि, चिकित्सा संस्थान, शिक्षण संस्थान की भूमि के साथ-साथ, नागरिकों द्वारा निजी परिसरों का उपयोग किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेल के मैदान के चारों ओर पौधारोपण किया जा सकता है।
दरअसल वृक्षारोपण का यह महाभियान महज एक कार्य भर नहीं है बल्कि सहजीवन, सहअस्तिव का संदेश देती अपनी सनातन संस्कृति के जीवनदायक मूल्यों से हमारे जुड़ाव को बढ़ाने का एक महा-अनुष्ठान भी है। ज्ञातव्य है कि वृक्ष बहुत सारे जीव-जंतुओं का आवास होते हैं और अनेकानेक जीव-जंतु पेड़-पौधों को अपना आहार भी बनाते हैं। पेड़ों की कटान के चलते वे आवास हीन व भोजन हीन होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित होता है। अतः वृक्षारोपण के द्वारा हम उन जीव-जंतुओं के जीवन और अपने पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित कर सकते हैं। यही सनातन धर्म भी है।
उत्तर प्रदेश कृषि प्रधान प्रदेश है। हमारी पूरी खेती मानसून पर आधारित है। प्रदूषित पर्यावरण के कारण हुए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव ने मानसून और खेती को बुरी तरह से प्रभावित किया है। वनाच्छादित धरा इसका सर्वोत्तम निदान है। दीगर है कि पेड़ वातावरण को प्रदूषित होने से बचाते हैं। बारिश के मौसम में वृक्षों की जड़ें मिट्टी को मज़बूती से पकड़े रखती हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी कम हो जाता है। जितने अधिक पेड़ होंगे हमें उसका उतना ही फ़ायदा मिलेगा। पेड़ों की जड़ें बारिश के पानी को धरती के नीचे (भूमिगत) स्तर पर पहुंचाने का काम भी करतीं हैं और साथ ही जल संरक्षण, मृदा अपरदन को रोकने और मिट्टी संरक्षण करने में विशेष योगदान देते हैं।
ध्यातव्य है कि अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार 01 एकड़ वन 06 टन वायु से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर उसे अवशोषित (consume) करता है तथा वापस वायु में 04 टन ऑक्सीजन डालता है। यह 04 टन ऑक्सीजन 18 लोगों की वार्षिक ज़रूरतों को पूरा करने का समर्थ रखती है। यह आकड़ा प्रदेश के 25 करोड़ नागरिकों को सतत स्वच्छ वायु मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री योगी के प्रयासों को न सिर्फ प्रासंगिक वरन अपरिहार्य व अभिनंदनीय बनाता है।
आज के उपभोक्तावादी समय में बीमारियां अपने चरम पर हैं। अतः फलों और देशी दवाओं की उपयोगिता हर आदमी को महसूस होने लगी है। ऐसे समय में मुख्यमंत्री योगी की यह पहल अत्यंत प्रासंगिक और अनुकरणीय हो जाती है क्योंकि इससे देश में न सिर्फ फलों की कमी को पूरा किया जा सकेगा, बल्कि औषधियों की आपूर्ति भी आसानी से की जा सकेगी। इस आवश्यकता व अपेक्षा को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने तय किया है कि संबंधित क्षेत्र के एग्रो क्लाइमेट जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) के अनुसार होना है इसलिए अलग-अलग जिलों के लिए चिह्नित 29 प्रजाति और 943 विरासत वृक्षों को केंद्र में रखकर पौधरोपण का अभियान चलेगा। इसमें राष्ट्रीय वृक्ष बरगद के साथ देशज पौधे पीपल, पाकड़, नीम, बेल, आंवला, आम, कटहल और सहजन जैसे औषधीय पौधों को वरीयता दी जाएगी।
कहा जाता है कि पौधे और बच्चे की परवरिश एक समान होती है। दोनों ही समाज और राष्ट्र का भविष्य होते हैं। दोनों की अच्छी परवरिश के प्रति योगी सरकार की प्रतिबद्धता सराहनीय है किंतु यह कार्य जन-सहयोग के द्वारा और अधिक सहजता व उत्कृष्टता से सिद्ध हो सकता है।
निःसंदेह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में ‘सरकार और समाज’ के सम्मिलित प्रयासों से उत्तर प्रदेश में विकसित हो रही ‘वृक्षारोपण संस्कृति’ एक स्वस्थ, सुरक्षित भविष्य के निर्माण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।