…तब सच्चे अर्थों में समाप्त होगा राम का वनवास

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प्रणय विक्रम सिंह

@SamacharBhaarti

प्रणय विक्रम सिंह

दीपावली अर्थात आलोक का विस्तार। घोर अंधकार का पलायन है, दीपावली। अंधकार पर प्रकाश की विजय का आनंद है दीपावली। यह आत्म साक्षात्कार का दिवस है। जहां निराशा का अंधेरा नजर आए वहां उत्साह का दीपक जलाकर उम्मीद का प्रकाश बिखेरा जाए।

दीपावली पर तेल से भरा, जलता हुआ छोटा सा दीपक, यह संदेश देता है कि तिल-तिल कर जलना और प्रकाश बिखेरना, जिस प्रकार दीपक का धर्म है, उसी प्रकार उत्सर्ग, मानव धर्म है।

लेकिन क्या आज हम अपने मानव धर्म को निर्वहन कर पा रहे हैं। आज दिये सिसक रहें हैं और बाती अपनी बेबसी पर रो रही है। गोदामों में अन्नपूर्णा सड़ रही है लेकिन भूख से मौतें जारी हैं।

चिकित्सालय कदाचार के चलते मरघट बन गए हैं। उत्कोच, उत्कर्ष  प्राप्ति का माध्यम बन गया है। इन अंधेरों के सौदागरों को पता ही नहीं है कि उनकी मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटखोरी ने कितने ही घरों के चिरागों को बुझा दिया है। इस मानसिकता का दमन ही दिवाली का उत्सव है।

सामयिक परिप्रेक्ष्य में बदलते युग संदर्भो के साथ आज दीपावली की मान्यताओं में काफी अन्तर आ चुका है। आज से डेढ़-दो दशक पहले हफ्ते भर पहले से ही बच्चे हथौड़ा लिए बिंदी वाले पटाखे बजाते नजर आते थे। राकेट चलाने के लिए खाली बोतलें ढूंढ कर रख ली जाती थी। पटाखों में भी बहुत बदलाव आया है।

घर की पुताई साल में दीवाली पर ही होती थी तो विद्यालय से 1-2 दिन की छुट्टी इसी बहाने से ली जाती थी। अब डिस्टेम्पर आदि तरह तरह के आधुनिक एडवांस रंगों ने हर साल की पुताई पर कंट्रोल किया है। मिठाईयां और नमकीन की कहें तो घर में ही सभी मिष्ठान बनते थे। लड्डू, मट्ठी तो महीना भर के लिए बन जाते थे और अम्मा को मिठाई पर ताला भी लगाना पड़ता था। अब कैलोरी फ्री, शुगर फ्री मिठाई का फैशन है।

सिर्फ दिवाली ही नहीं दिवाली के साथ शुरू हुई त्योहारों की श्रृंखला पास पड़ोस, सम्बन्धी, मित्रों के साथ मिलकर धूम धाम से मनाई जाती थी। अब हम सिमट रहे हैं अपने अपने दायरों में और दिवाली एसएमएस, ई-ग्रीटिंग, मिठाई, उपहारों का औपचारिक आदान-प्रदान, औपचारिक दिवाली मिलन समारोह जैसा 1-2 घंटे का कार्यक्रम कर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं।

दीपावली की रात्रि में अब मिट्टी के दीये के स्थान पर मोमबत्तियां और बिजली की झालर लगाकर में दीपावली का मूल उद्देश्य कहीं भी दृष्टिगत नहीं होता है। दीपोत्सव के उपलक्ष्य में सजे बाजारों की चमक-दमक और स्वार्थोल्लास में बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं जो बाजार के किनारे पर ही खड़े रह जाते हैं। वे तो बस देख कर ही संतोष कर लेते हैं।

हर दीवाली में यही सवाल मेरे मन में गूंजता है कि जो ‘बाजार’ में अपने होने का प्रमाण नहीं दे सकते क्या उनके लिए त्यौहारों का कोई मतलब नहीं है? मुझे नहीं लगता त्यौहार इसलिए मनाए जाते हैं कि हम ज्यादा से ज्यादा अपनी लालसा को तुष्ट  करें। मेरा मानना है कि त्यौहार हमें त्याग सिखाते हैं। समाज में दूसरे के प्रति संवेदनशीलता और सहअस्तित्व से जीना सिखाते हैं। अपनी अतृप्त  लालसा पूर्ति की जगह, जरूरतमंद की जरूरत को पूरा करने का संदेश देते हैं।

पता नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी के आने के बाद अयोध्या में दीपावाली कैसे मनाई गयी थी लेकिन मैं खेतों में दीपक रखते हुए बड़ा हुआ हूं। खेत की मेड़ पर दीपक रखा तो उस मिट्टी  के प्रति सहज अपनापन उत्पन्न हो गया।

समझने की बात है कि घर के मुंडेर पर दीपक इसलिए नहीं रखते कि पड़ोसी से प्रतियोगिता करनी है। मेरा घर जगमग हो तो पड़ोसी का भी हो। मेरे आंगन में ही अकेली रोशनी क्यों हो, दूसरे के आंगन में मेरे आंगन से ज्यादा रोशनी हो।

आस-पास हर घर में दीपक जले इसकी एक अघोषित चिंता और व्यवस्था का संस्कार ले कर बड़े हुए हैं हम। आज की पीढ़ी में यह संस्कार पश्चिमीकरण की आंधी में शिथिल अवश्य होने लगे हैं, पर समाप्त नहीं हुए हैं। हां, मात्रा का भेद जरूर आ गया है।

चारो तरफ फैले दिये की रौशनी तले कितना अंधेरा है यह समझने के लिए हमें बस अपने आस-पास निहारने भर की जरूरत है। लाखों-लाखों दीपशिखाएं चुपचाप आवाजें दे रहीं हैं। खुशहाली में सराबोर यह त्योहार लाखों आंसुओं में डूबा हुआ है। इस देश में दर्जनों की संख्या में बहू को, पहली ही दीपावली में, दहेज नाम के पटाखों के हवाले कर दिया जाता है।

विडंबना है कि किसी घर से मीठे के डब्बे बासी होने पर फेंके जायेंगे तो कोई कई रातों बाद भी आज भी भूखा सोयेगा। किसी घर के बच्चे तीन-चार जोड़ी कपड़े बदलेंगे, तो किसी के तन पर आज भी चिथड़े नहीं होंगे। कोई अमीर आज कुत्ते का घर भी सजायेगा पर किसी गरीब की बरसों से टूटी झोपड़ी में आज भी अंधेरा छाया रहेगा।

ऐसे समय में अन्धेरों से जूझने की आस्था कहां से आये। प्रकाश की किरणों को किस सूरज में ढूंढ़ा जाए। सर्वत्र निराशा का माहौल है। निराशा के इस दौर में आस्था को कैसे पाए।

समय की धारा को मोड़ने का साहस रखने वाला मनुप्य स्वयं ही खो गया है। पर जो नया सृजन कर रहा है उसे अन्धकार कब तक दबा सकता है। वह तो अन्धकार को चीरकर बाहर निकल जायेगा और पूरे वातावरण में आलोक भर देगा। जीवन में मानवीय मूल्यों की स्थापना करना, मानव जीवन में वास्तविक मूल्यों का प्रकाश भरना ही वक्त की आवाज है।

सदाचार बनाम भ्रष्टचार, सच्चरित्रता बनाम चरित्रहीनता, साक्षरता बनाम निरक्षरता, मूल्य बनाम अवमूल्यन आदि की परिस्थिति से गुजरते हुए हमारा जीवन व्यतीत होता है। सभी ‘बनामों’ का मर्म एक ही है उजाला बनाम अंधेरा। ईमान का उजाला कदाचार के समक्ष धूमिल होता जा रहा है। आज तिहाड़ में लोकतंत्र की संसद लगती है। ये हमारे चरित्र में मिलावट कर रहे हैं। ध्यातव्य हो कि भारत के चरित्र की रक्षा के लिये ही राम ने चौदह  वर्षों तक वनवास किया एवं रावण का नाश किया।

वर्तमान परिदृश्य इन उजालों से मुंह फेरता दिखायी दे रहा है।  स्वाधीन भारत में राष्ट्र लक्ष्मी का प्रकाश कुछ गिनी-चुनी मुंडेरों पर केंद्रित हो गया है। राष्ट्र लक्ष्मी सीमित तिजोरियों में कैद हो गई है। लक्ष्मी के शुभ्र प्रकाश को सचमुच उल्लू पर बिठा दिया गया है। तस्करों के कुचक्र में फंस कर लक्ष्मी अंधकारोन्मुख हो गई है। अंधेरी लक्ष्मी (काला धन) का विनाश हो। शुभ्र सतोगुणी सर्व मंगला लक्ष्मी का उदय हो।

ज्योति पर्व, प्रहरी की भांति घूम-घूम कर बता रहा है कि कहां-कहां कैद है राष्ट्र लक्ष्मी ! संकेत कर रहा है, उधर देखो ! उन मुंडेरों पर सिमट गए हैं असंख्य दीप और इधर न जाने कितनी झोपड़ियों में घनघोर अंधेरा है। सीमित मुंडेरों पर कैद दीपावली को उतारकर एक-एक कुटिया तक ले जाना अभी बाकी है। सावधान! हमारी लक्ष्मी विदेश न चली जाए।

आज तक कहते रहे हैं तमसो मा ज्योतिर्गमय, पर इस बार दीपोत्सव यह कह रहा है कि ज्योति को ही अंधकार की ओर ले चलें। राष्ट्र लक्ष्मी कुटियों में और अधिक आलोक बिखेरें।

ज्योति से ज्योति जले, दीपोत्सव की आभा असंख्य आलोक पुष्पों में खिले। दीपावली कोई एक दिन का त्यौहार नहीं है, यह तो संकल्प का एक दिन है कि हम आज से भारत देश को अपनी सच्ची निष्ठा और ईमान की मेहनत के दीपों से वर्षपर्यन्त आलोकित करेंगे। इस लोकतंत्र का जब तक अंत:करण से सम्मान नहीं होगा तब तक सच्चे अर्थों में राम का वनवास समाप्त  नहीं हो पायेगा। आइये राम के वनवास को समाप्त करें…

आप सभी को प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं।

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