क्या नया शासनादेश लगा पायेगा दवाओं के लोकल पर्चेज के खेल पर लगाम ?

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प्रणय विक्रम सिंह

@SamacharBhaarti

यूपी की सरकारी डिस्पेंसरियों में चल रहे करोड़ों के लोकल पर्चेज के खिलाड़ियों की नकेल कसने के लिए सरकार ने नया शासनादेश जारी कर तो दिया है , लेकिन बड़े अफसरों के रुतबे के आगे ये कितना कारगर साबित होगा ये देखने की बात होगी ।

प्रदेश सरकार ने जिला चिकित्सालयों में भारी मात्रा में दवाओं के स्थानीय क्रय (लोकल परचेज) पर अंकुश लगाने के लिए शासनादेश संख्या 234 / 2019 /9 93 / पांच-6 -2019 -16 (बजट) /18 दिनांक ०6 सितंबर 2019 के द्वारा आदेशित किया गया है कि चिकित्सालय में आने वाले जिन मरीजों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिलती है उन्हें लोकल परचेज की सुविधा प्रदान न की जाय।

वास्तव में जिला चिकित्सालयों में उन्हीं दवाओं के लोकल परचेज की व्यवस्था की गई थी जो चिकित्सालय में नहीं हो या फिर मरीज को कोई स्पेशल रिक्वायरमेंट हो ,जिसे संबंधित चिकित्सक आवश्यक समझकर रिकमेण्ड करे ।

लेकिन बड़े अफसरों के रसूख ने इस नियम की धज्जियां उड़ा दी । मिली जानकारी के अनुसार जिलों में तैनात वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारीयान को मेडिकल रिम्बर्समेंट की सुविधा होती है , मगर ये भी सच है कि सरकारी डिस्पेंसरियों में सबसे अधिक लोकल पर्चेज भी इन्ही अफसरों के लिए किया जाता रहा है ।

अफसरशाही के रुतबे का आलम ये है कि कई कहीं-कहीं अगर जिले के सीएमएस/एसआईसी ने दवाओं की लोकल पर्चेज करने से मना किया तो उसे इन अधिकारियों द्वारा उनको प्रताड़ित भी किया गया ।

जिले के बड़े हाकिम के खुन्नस से बचाने के लिए सीएमएस और एसआईसी किसी और मरीज के नाम से ओपीडी पर्चा बनवा कर उस मरीज के नाम से वो दवाएं लिख कर लोकल पर्चेज करवा देते हैं जिसकी जरूरत असल में बड़े हाकिम को होती है । आला अफसरों के इस रसूख का भरपूर इस्तेमाल इनके पीए / सहयोगी भी करते रहे हैं।

राजधानी लखनऊ के सचिवालय डिस्पेंसरी में 70 से 80 लाख प्रतिवर्ष का लंबा चौड़ा बजट केवल लोकल पर्चेज के मैड में आवंटित होता है । सचिवालय के विधायक ,मंत्री से लगायत सचिवालय के बडे़ छोटे अधिकारी ,कर्मचारी सभी दवाओं के लोकल परचेज के लिए डिस्पेंसरी के अधिकारियों कर्मचारियों पर दबाव डाल जाता है , जबकि इन सभी को रीइमबर्समेंट की सुविधा मिलती है।

स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते हैं कि राजधानी के कई अस्पतालों में करोड़ों के लोकल पर्चेज का बजट केवल बड़े अधिकारियों के लिए आवंटित होता है। बड़े अधिकारी प्रोटीन और उन दवाओं को भी उपलब्ध कराने के लिए दबाव देते हैं जो अस्पतालों में खरीदी ही नहीं जा सकती है। चिकित्सालयों के अधिकारी दबाव में दूसरी दवाओं की लोकल पर्चेज दिखाकर उन दवाओं को उपलब्ध कराते रहे हैं ।

वास्तविकता तो यह है कि रिम्बर्समेंट लेने वाले सरकारी कर्मचारियों की लोकल पर्चेज कम संख्या में होती है , मगर असल लाभ तो केवल बड़े अधिकारी ही उठाते हैं ।

इस खेल पर रोक लगने के लिए सरकार ने शासनादेश तो कर दिया है , मगर लेकिन जिलों में तैनात अधिकारियों का दबाव कैसे कम हो, इसका तोड़ निकाला जाना बाकी है ।

स्वास्थ्य विभाग के लोगों का कहना है कि अब संभावना यह रहेगी कि बड़े सरकारी अधिकारियों की दवाओं की लोकल परचेज तो की जाएगी और रजिस्टर में नाम किसी सामान्य मरीज का लिख दिया जाएगा।

स्वास्थ्य विभाग से रिटायर हो चुके एक पूर्व सीएमओ का कहना है कि – सरकार को चाहिए कि एक शासनादेश सभी विभागों के लिए जारी किया जाए जिसके अनुसार यदि अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं के अलावा किसी भी दवा के लिये मांग की जा रही है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही की जायेगी, और तभी इस बढ़ती प्रवृत्ति को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है।

 

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