योगी इफेक्ट: तीन वर्षों में UPPSC की किसी परीक्षा के विरुद्ध न्यायालय द्वारा कोई स्थगनादेश नहीं

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प्रणय विक्रम सिंह

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प्रणय विक्रम सिंह

बदली हुई कार्य संस्कृति के आलोक में लोक सेवा आयोग, उ.प्र. उपलब्धियों की नई इबारत लिख रहा है। कभी अनियमितता, अराजकता और अनियोजन के दलदल में डूबा आयोग, आज शुचिता, विश्वसनीयता, पारदर्शिता एवं समयबद्धता का मानक बन गया है। दीगर है कि आयोग द्वारा वर्तमान सरकार के मात्र 03 वर्ष की अवधि में कुल 26103 पदों पर अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। जबकि विगत सरकार के 05 साल का कार्यकाल की अवधि में लगभग 26000 अभ्यर्थियों का चयन किया गया।

वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों में उपजिलाधिकारी के 141 पद, पुलिस उपाधीक्षक  के 184 पद, एलोपैथिक चिकित्साधिकारी के 4108 पद,  होम्योपैथी चिकित्साधिकारी के 773 पद, आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारी के 969 पद तथा डेन्टल सर्जन के 535 पद शामिल हैं।   उत्तर प्रदेश की न्यायिक परीक्षा पीसीएस ( जे.) के अंतर्गत 610 अधिकारियों का चयन किया गया।

विदित हो कि इन 03 वर्षों में 6566 अधिकारियों का पदोन्नति के माध्यम से चयन किया गया, जबकि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा 05 वर्ष में मात्र 1588 अधिकारियों को पदोन्नति प्रदान की गयी थी।

समयबद्धता सुनिश्चित हुई  

आयोग ने  सम्पूर्ण प्रक्रिया को समयबद्ध व सुव्यवस्थित करने हेतु सबसे पहले पूरे वर्ष का परीक्षा कलेण्डर जारी किया, जिससे निर्धारित कार्यक्रमों के ध्यान में रख कर अभ्यर्थियों को अपनी तैयारी करने का अवसर मिला। साथ ही कब, क्या और कैसे होना है, का ‘नियोजन पथ’ भी तैयार हो सका। यह कुशल नियोजन का ही परिणाम था कि समय से विज्ञापन, परीक्षा समय सारिणी और समयबद्ध परिणाम घोषित किया जा सका।

अभ्यर्थियों की शिकयत निवारण की व्यवस्था    

अभ्यर्थियों की शिकायतों के निवारण के लिए प्रत्येक बुधवार को आयोग के अध्यक्ष के द्वारा शिकायतकर्ताओं से मिल कर समस्त शिकायतों के निवारण की व्यवस्था संचालित की गई। जिससे प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने में सफलता प्राप्त हुई।


योगी इफेक्ट का परिणाम

गौरतलब है कि जहां पूर्व की सरकारों में व्याप्त भ्रष्टाचार व जातिवाद के कारण लगभग सभी परीक्षाएं न्यायालय की चौखट पर धराशायी हो जाया करती थीं, वहीं वर्तमान सरकार के नेतृत्व में विगत 03 वर्षों में आयोग द्वारा संचालित एक भी परीक्षा व चयन प्रक्रिया पर कोर्ट के द्वारा कोई सवाल नहीं खड़ा किया गया। यह बदली हुई कार्यसंस्कृति का सबसे बड़ा उदाहरण है।

दरअसल किसी भी व्यवस्था में संवैधानिक संस्थाओं की स्थिति उस शासन व्यवस्था का दर्पण होती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में आयोग का सम्मान पुनः प्रतिष्ठित हुआ। आमजन व प्रतियोगी छात्र/छात्राओं के मन में निष्पक्ष चयन को लेकर विश्वास जाग्रत हुआ।


पूर्व सरकार के कार्यकाल में आयोग था अनाचार का केंद्र  

उत्तर प्रदेश की पूर्व सरकार का 05 वर्षों का कार्यकाल आयोग की विश्वसनीयता, पारदर्शिता, शुचिता का हरण करने वाले थे। स्थिति यह थी कि जातीय तुष्टिकरण को बढ़ावा देते हुए आपराधिक इतिहास वाले डॉ. अनिल यादव को आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया, जिससे  आयोग की गतिविधियां भ्रष्टाचार में लिप्त हो गईं। यही नहीं आयोग के सचिव पद पर एक अपात्र विभागीय अधिकारी रिजवानुर्रहमान को नियुक्त किया गया। बाद में दोनों लोगों की उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा बर्खास्त किया गया।

अनाचार की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2012 से 2017 तक आयोग के माध्यम से हुए चयनों में गंभीर शिकायतों के दृष्टिगत CBI की जांच चल रही है।   इस दरम्यान परीक्षाओं के पेपर आउट होने के कारनामों ने आयोग की छवि को जमकर धूमिल किया। अनियमितता का आलम यह था कि आयोग के इतिहास में पहली बार PCS-2015 की प्रारंभिक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हुआ।  वर्ष 2016 में आरओ/एआरओ की प्रारंभिक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हुआ जिसके कारण वर्तमान शासन द्वारा उक्त परीक्षा को निरस्त कर पुनः  परीक्षा आयोजित करनी पड़ी।

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